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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
अध्याय 1
हिंदी भाषा
1. भाषा क्या है
अपने विचारों और भावों को प्रकट करने के लिए हमारे पास अनेक साधन हैं। रेलवे
में हरी झंडी या हरी बत्ती दिखाकर यह संकेत दिया जाता है कि गाड़ी चले।
कंडक्टर बस को रोकने या चलाने के लिए अलग-अलग तरह की सीटी बजाता है।
स्काउट/गाइड अपनी बात कहने के लिए कई तरह के संकेतों का प्रयोग करते हैं।
बच्चा भी हँसकर या रोकर अपने भाव प्रकट करता है। यह सब संकेत की भाषा है,
लेकिन इन संकेतों, इशारों और चिह्नों को सही मायने में भाषा नहीं कह सकते।
भाषा तो भाव और विचार प्रकट करने वाले उन ध्वनि-संकेतों को कहते हैं, जो मानव
मुख से निकले हों।
मानव मुख से निकले ये ध्वनि संकेत व्यवस्था में बँधे होते हैं। यह व्यवस्था
ध्वनियों के उच्चारण, शब्दों एवं पदों के निर्माण, वाक्यों की रचना आदि में
मिलती है। उदाहरणार्थ हिंदी की ध्वनि विषयक व्यवस्था के अनुसार ‘प्क’ ‘प्त’
जैसे व्यंजनों से शब्द का आरंभ नहीं हो सकता जबकि ‘प्य’ ‘प्र’ आदि से
(प्यासा, प्रेम) हो सकता है। इसी प्रकार हिंदी वाक्य रचना में क्रिया की
अन्विति कर्ता आदि से होती है। यह व्यवस्थाबद्ध होना ही मानव को पशु-पक्षी की
भाषा से भिन्न करता है।
भाषा के ध्वनि-संकेत कुछ खास अर्थों में रूढ़ होते हैं अर्थात् किस प्रकार के
ध्वनि समूहों (शब्दों) से किस प्रकार का अर्थ व्यक्त होगा, इसका विधान हर
भाषा में अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए एक ही वस्तु के लिए हिंदी में जल,
तमिल में तन्नी, उर्दू में आब और अंग्रेजी में वाटर शब्द का प्रयोग होता है।
इसी प्रकार एक ही शब्द एक ही भाषा में एक अर्थ रखता है, दूसरी भाषा में कुछ
और जैसे कम हिंदी में न्यूनता बताता है लेकिन अंग्रेजी में आना क्रिया का भाव
प्रकट करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भाषा में शब्द और अर्थ का संबंध
प्रायः रूढ़ होता है।
इससे भाषा के कई लक्षण स्पष्ट होंगे – भाषा मूलतः ध्वनि-संकेतों की एक
व्यवस्था है, यह मानव मुख से निकली अभिव्यक्ति है, यह विचारों के आदान-प्रदान
का एक सामाजिक साधन है और इसके शब्दों के अर्थ प्रायः रूढ़ होते हैं। अतः हम
कह सकते हैं कि भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए रूढ़ अर्थों में
प्रयुक्त ध्वनि संकेतों की व्यवस्था ही भाषा है।
(यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति)
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